Tuesday, February 14, 2012

गाँधी टोपी

        देश को स्वत्रंता देने के उद्देश्य से ब्रिटिश हुकूमत ने केंद्र में प्रतिनिधि सरकार के गठन के लिए सन 1946 में आम चुनाव की घोषणा की थी.इस चुनाव में केवल तीन राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ रही थी.हिन्दुओं की और से कांग्रेस,मुसलमानों की और से मुस्लिम लीग,और दलित समाज की और से शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किये थे.पूना पेक्ट के अनुसार दलित जातियों के लिए कुछ सीटें सुरक्षित थी.इस सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस और शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के बीच ही मुकाबला था.शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवारों के विरुध्द कांग्रेस ने अपने 'हरिजन उम्मीदवार' खड़े किये थे.
       आम चुनाव का महत्त्व समझाने 12 दिस. 1945 को नागपुर में अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का अधिवेशन हुआ था. मध्य-प्रान्त और बरार की चुनाव मुहिम इस अधिवेशन से आरम्भ हुई थी. डा. बाबा साहेब आंबेडकर इस अधिवेशन के प्रमुख वक्ता थे. वे ट्रेन द्वारा नागपुर पहुंचे थे. नागपुर रेलवे स्टेशन पर समता सैनिक दल के हजारों कार्यकर्ता उनके स्वागत में मौजूद थे. स्टेशन के बाहर समता सैनिक दल ने बैंड और बिगुल बजाकर बाबा साहेब डा. आंबेडकर को सलामी दी.स्टेशन से जुलुस कस्तूरचंद पार्क पहुंचा और विशाल सभा में परिवर्तित हो गया.इस अधिवेशन में लाखों की संख्या में दलित जनता दूर-दूर से अपने नेता के दर्शन करने आई थी.दलित नेताओं में अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी  बापू साहब पी. एन. राजभोज , राव साहेब ठवरे, रेवाराम कवाडे, टी. एल. पाटिल आदि उपस्थित थे.
     तालियों की गडगडाहट के साथ डा. बाबा साहेब आंबेडकर का भाषण शुरू हुआ.बाबा साहेब ने अपने भाषण में कहा कि कांग्रेस, जनता को बतलाती है कि अंग्रेजों को देश के बाहर निकालना उसका ध्येय है और कि वह स्वतंत्रता के लिए लड़ रही है.कांग्रेस के लोग बतलाते हैं कि यही वह पार्टी है, जो आजादी के लिए संघर्ष कर रही है. मगर, ऐसा बतलाकर साथियों, कांग्रेस के लोग जनता में भ्रम फैला रहे हैं. वास्तव में, आजादी सबको चाहिए. देश की आजादी हमें भी चाहिए.स्वराज हमें भी चाहिए.
       स्वराज, जैसा कि नारा कांग्रेस लगाती है,यह कोई विवाद का प्रश्न नहीं है.इस देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं. मगर, इस देश में अल्पसंख्यक भी है.स्वराज, हिन्दू बहुसंख्यकों को तो बहुत भाता है मगर, क्या यह अल्पसंख्यकों को भी उतना ही भाता है ? इस देश का बहुसंख्यक जब स्वराज की बात करता है तो देश के अल्पसंख्यकों को भय लगता है. ऐसा क्यों है ? स्वराज की लड़ाई पिछले बीस सालों से लड़ी जा रही हैं. मगर, अल्पसंख्यकों के भय को ख़त्म करने के लिए हिन्दू कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं. 
        साथियों, इस देश के दलित समाज को भी आजादी चाहिए. उन्हें भी स्वराज चाहिए.कांग्रेस तो आजादी के लड़ाई पिछले बीस सालों से लड़ रही है. मगर, दलित समाज तो आजादी की लड़ाई सदियों से लड़ रहा है ! क्या आज भी  हिन्दू उन्हें आजादी देने तैयार है ? जिस तरह हिन्दू  स्वतंत्रता चाहते हैं. दलित समाज भी स्वतंत्रता चाहता है.अगर हिन्दू , देश की सत्ता अपने हाथ में देखना चाहते हैं तो दलित समाज भी चाहता है कि देश की सत्ता में उसकी भागीदारी हो.गांधीजी का कहना है कि दलितों का उध्दार राजनीति से नहीं सामाजिक सुधारों से होगा. गांधीजी का कहना कितना सही है यह तो वे ही जाने. अस्पृश्यता नष्ट करने के लिए वे वर्षों से प्रयत्न कर रहे हैं, जैसे कि उनका कहना है. किन्तु अस्पृश्यता आज तक नष्ट नहीं हुई और न ही मन्दिरों के दरवाजे खुले.मैं जगन्नाथ मन्दिर गया था मगर, मुझे अन्दर नहीं जाने दिया गया. अब इस पर आप लोग ही विचार कीजिये. आप लोगों को सैकड़ों वर्षों से हिन्दुओं के द्वारा किये जा रहे अन्याय और अत्याचारों से मुक्त होना है.
      डा. आंबेडकर ने आगे कहा कि कांग्रेस को दलितों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है.आने वाला चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है. इस चुनाव में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवारों को जीता कर देश की सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी है.अपने हाथों में सत्ता आये बगैर दलितों का उध्दार नहीं हो सकता.राज्य की सत्ता में भागीदारी के बिना दलितों की उन्नति संभव नहीं है.दलितों के लिए राजनीति ही एक मात्र उपाय है.गांधीजी,दलितों की समस्या को राजनीति से नहीं सामाजिक सुधार से हल करने की बात करते हैं. वे झूठ बोलते हैं. आखिर दलित, हिन्दुओं के सामाजिक सुधार पर क्यों निर्भर रहे ? हमें हिन्दुओं की दया नहीं अपने अधिकार चाहिए . हमें सत्ता में हिस्सेदारी चाहिए.राजनैतिक सत्ता की हिस्सेदारी से ही हमें अधिकार प्राप्त हो सकते हैं.
        दलित समाज के लोग अल्पसंख्यक हैं.हमारे पास कोई सत्ता नहीं है.चूँकि सत्ता नहीं है इसलिए उन्नति नहीं हो रही है.आप लोगों को राजनैतिक रूप से ताकतवर होना है.शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन देश के दलित समाज की सच्ची प्रतिनिधि संस्था है. उसकी शक्ति लगातार बढ़ रही है.इसका प्रमाण यहाँ उपस्थित जन-समूह है.यदि आप लोग इसी प्रकार साथ देते रहे तो देश की राजनीति में दलितों को अपने अधिकार और हिस्सा मिलने के दिन दूर नहीं है.
          इसी तारतम्य में 14 दिस. 1945 को नागपुर में ही समता सैनिक दल का प्रांतीय सम्मेलन हुआ.इस अधिवेशन की अध्यक्षता समता सैनिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. सुबैया ने की थी. सुबैया ने कहा कि समता सैनिक दल का काम दलितों की सुरक्षा है. किन्तु , इस समय हमें दलित समाज को अधिकार मिले, इसके लिए सहयोग करना है.समता सैनिक दल के सैनिकों को शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवारों को जिताने के लिए कार्य करना है. 
         इस अवसर पर अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी पी. एन. राजभोज भी उपस्थित थे. अपने भाषण में राजभोज ने कहा कि आने वाला चुनाव दलित समाज के राजनैतिक अधिकारों की लड़ाई है. केंद्र की सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त करना दलितों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है.इसलिए शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन और समता सैनिक दल के कार्य-कर्ताओं को सावधान रहना चाहिए. राजभोज ने कहा कि दलित समाज ने हमें डा. बाबा साहेब आंबेडकर जैसा उच्च सामाजिक चिंतक और समर्थ नेता दिया है. हमें अपने अधिकारों की लड़ाई उन्हीं के नेतृत्व में लड़नी है. आपने डा. बाबा साहेब आंबेडकर की जय जयकार करते  हुए भरी सभा में लोगों को 'जय भीम' का जयघोष करने को कहा, जिसे उपस्थित जन-समुदाय ने बड़े उत्साह के साथ तालियों की गडगडाहट से स्वागत किया.
       बापू साहब पी. एन. राजभोज के 'जय-भीम' के नारे का ऐसा असर हुआ कि वहां पर उपस्थित लोगों में जिन-जिन ने गाँधी टोपी पहनी थी, उतार कर फेक दिया. दोस्तों, इस सम्मेलन से  'जय भीम' का अभिवादन इतना व्यापक हुआ कि लोग एक-दूसरे के मिलते समय अब  'श्री राम'  और 'जै जै राम' की जगह  'जय-भीम' का अभिवादन करने लगे.

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